माँ...
वर्ष बीते, और बीते । धीरे-धीरे समझाते हैं ।
“पुत्र, तुम प्रमाण हो ।”
“प्र ∫ ∫ ∫ मा ∫ ∫ ∫ ण... प्र ∫ ∫ ∫ मा ∫ ∫ ∫ ण ?”
“हाँ, प्रमाण ।”
“तुम प्रमाण हो... हमारे शरणागत् की रक्षा करने
के प्रयास का प्रमाण ।”
“प्र ∫ ∫ ∫ मा ∫ ∫ ∫ ण...”
“हाँ भनोत्, प्रमाण ।”
मैं टकटकी लगाए देख रहा था – भनोत्, प्र ∫ ∫ ∫ मा∫ ∫ ∫ ण ।
फिर देर हुई । समय बीता । प्रश्न मन
में उमड़ते रहे । मन उत्तर को तरसता
रहा ।
प्रमाण... शरणागत्... प्रण... भनोत् ।
“हाँ पुत्र, एक स्त्री आयी थी हमारे राज्य
में... शरणागत् बन, शरण माँगती ।”
“मैं राजा हूँ, पुत्र, और तुम्हारे पिता राजगुरु । शरणागत् की रक्षा करना धर्म है हमारा । और स्त्री तो स्वयं शक्ति है ।”
मैं मुस्काया... स्त्री, शक्ति । माँ, मेरी शक्ति । माँ शक्ति ।
फिर अश्रुपूरित हो गए नयन ।
माँ चली जा रहीं हैं ।
माँ जली जा रहीं हैं ।
माँ शक्ति चली गईं ।
मेरी माँ चली गईं ।
मेरे आँसू देखे न गए उनसे पिताश्री भी रो पड़े ।
रा ∫ ∫ जा ∫ ∫ जी भी रो पड़े ।
समय बीता पर आँसू बहते रहे । बहते आँसू सबसे कहते रहे –
माँ, मेरी माँ ।
माँ चली जा रहीं हैं ।
माँ जली जा रहीं हैं ।
किसी ने रोका भी नहीं था उन्हें । क्यों नहीं रोका था उन्हें ?
माँ मेरी चलतीं रहीं ।
माँ मेरी जलती रहीं ।
वर्ष ।
और वर्ष ।
कुछ और वर्ष ।
हृदय मे अब भी समृतियां थीं ।
आँखों में अश्रु भी थे ।
कहते हैं आज मुझे ले जा रहे हैं । पिता जी और रा ∫ जा ∫ जी मुझे ले जा रहे हैं ।
मंदिर ।
मंदिर ।
“पुत्र, तेरी माँ का है ।
यह मंदिर तेरी माँ का है ।”
मैं खुश हूँ ।
माँ, माँ, माँ ∫ ∫ ∫...
यह गोद है, गोद है यह मेरी माँ की । माँ की गोद मिल गई मुझे । मैं प्रसन्न हो खेलने लगा । माँ की गोद में खेलने लगा ।
माँ...
माँ...
माँ...
मेरी माँ ।
लौट आयीं मेरी माँ । हम
खेल रहे हैं ।
पिता श्री मुस्कुरा रहे हैं ।
रा ∫ ∫ जा ∫ ∫ जी भी मुस्कुरा रहे
हैं ।