- तो मेरी ट्रीट पक्की?
- हाँ, पक्की ।
- याद है न क्या है मेरी ट्रीट ?
- हाँ, टिक्कियां ।
- हाँ ।
- मोटी हो जाएगी ।
- तो क्या ? जीना छोड़ दूँ । बिना चाट के क्या ज़िंदगी और मुझे तो हर पल जीना है भरपूर ।
- इतनी कैलोरीज़ और तेल... कितनी बीमारियां...
आज हम घर से बाहर कदम रखते हैं तो मुँह में पानी लाने वाले व्यंजन अपनी ओर बुलाते हैं । कहाँ तक संयम रखें ? हाँ, मैं उन करोड़ों लोगों में से एक हूँ जिनके लिए सरोजनी नगर का बाज़ार स्वर्ग से कम नहीं ।
और दुनिया-भर के वैज्ञानिक और विशेषज्ञ जो मर्ज़ी कहें - गोलगप्पों, टिक्कियों और चाट आदि खाने से मुझे कोई नहीं रोक सकता । जिसने यह सब नहीं चखा उसका संसार में आना ही व्यर्थ है ।
और एक प्लेट टिक्की अपने-आप में संपूर्ण भोजन है । आलू, मूंग-दाल, सफेद चने, दही, सलाद के रूप में मौसमी सब्ज़ियां (जैसे बंद गोभी, मूली, गाजर, आदि) और प्याज़ । सब कुछ है इसमें । और इन सब के स्वाद में चार चाँद लगातीं सोंठ और पुदीने की चटनी ।
भल्ला-पापड़ी... पापड़ी चाट... और...
मुँह में आते ही गप्प से फूटते गोल-गप्पे । भारत के कई भागों में अलग-अलग नाम से सबके दिलों पर राज करते हैं । पानी-पूरी कहो या फुचका पर वही चटपटा स्वाद । ज़रा-सा आटा या सूजी, आलू, चने, मसाला और खट्टी-मीठी चटनी के साथ काँजी...
आ गया न मुँह में पानी ?
इस सब के सामने किसी भी पंच-सितारा होटल का कोई व्यंजन नहीं ठहर सकता और इनकी सुगंध-मात्र से ही मैं भांप जाती हूँ कि बस मज़िल करीब है ।
आज कल बच्चे बर्गर और पिज़ा ढूंढते हैं मगर अगर एक बार उनके मुँह को टिक्की, गोल-गप्पे और चाट लग जाए तो सब भूल ठेले के सामने भीड़ लगाएंगे ।
कुछ माह पहले मैं यूं ही आदतन अपने मनपसंद 'सस्ते' व्यंजन खा रही थी, एक अधेड़-उम्र का जोड़ा पास से गुज़रा । मुँह में पानी तो आया होगा पर फिर गरीब से ठेले वाले को देख खिसकने लगा । पर लपलपाती जीभ जीत गई । और वे भी आ खड़े हुए... खाए जा रहे थे और साथ-साथ टिप्पणियों की बरसात... देखो, कितनी गंदगी है (ठेले वाले ने पत्तल फेंकने के लिए टोकरी अलग रखी थी), कुछ खास नहीं है, मुझे तो फलां रेस्तरां में खाना ज़्यादा पसंद है... वगैरह, वगैरह...
किसी ने जबरन पकड़ कर तो नहीं बुलाया था ।
पर स्वाद... आह, जो चाट-पकौड़ी के स्वाद में कैद हो उसके लिए क्या शर्म, क्या करोड़ों की दौलत ? जेब में करोड़ों हों पर वही 15 - 20 की चाट जीतती है । कुछ तो वजह है कि शादियों में लोग खाने से ज़्यादा चाट पर टूटते हैं ।
रेस्तरां में इंतज़ार करने कि बजाय सड़क किनारे खड़े चाट वाले के पास जाएं और तुरंत पेट भर जाएगा । काम की जल्दबाजी में भूखे रहने की क्या ज़रूरत है ? मैंने कई व्यस्त दिनों में समय बचाने के साथ-साथ अपनी चटोरी ज़बान को भी संतुष्ट किया है ऐसे ही चाट की दुकान पर । दो मुलाकातों और बैठकों के बीच बस दस मिनट में ।
देश में विदेशी चीज़ों के खिलाफ़ प्रवचन देने वालों अगर असल में लोगों को उनकी जड़ों से जोड़ना है तो चाट-पकौड़ी की दावत लगा दो । देखना राजा और रंक, शेर और मेमने सब खिंचे चले आएंगे । और तो और यह तो हमारी इतनी अनमोल विरासत है कि इनका राज़ लेने बड़े-बड़े देश कतार में खड़े नज़र आएंगे । अगर देखना है कि लोग अपनी जड़ों से कितने जुड़े हैं तो किसी भी नुक्कड़ पर देखो आज भी ठेलों पर सब साथ खाते दिख जाएंगे ।
अगर असली एकता, समानता और समाजवाद लाना है तो बस सब को एक बार चाट चखा दो ।
आज भी यू० पी० एस० सी० (नई दिल्ली) की चाट के किस्से सुनाए जाते हैं कि कैसे आय-कर विभाग के कर्मचारियों ने पत्तल गिने थे । और मेरे विद्यालय का चाट वाला, सुना है कि उसकी दिल्ली में दो-तीन कोठियां थीं या फिर वह कमला मार्किट में 'चाचा के छोले भठूरे' वाला...
कई पुश्तों ने इनके हाथों के पकवान खाए हैं । यही तो पहचान हैं दिल्ली की, दिल्ली की जान हैं यह या यों कहें कि दिल्ली के दिल की धड़कन हैं यह ।
शरमाएं नहीं और ज़्यादा सोच-विचार में जीवन व्यर्थ न गंवाएं । चाट वाले की आवाज़ जैसे ही कानों में रस घोले, दौड़ें और लपक कर पकड़ लें उसे, कहीं वो चला न जाए... क्यों व्यर्थ में पढ़े जा रहे हैं... अगर चाट खत्म हो गई तो...
Distinct Kashmiri Cremation
5 years ago
4 comments:
nice
Thanks :-)
gud job ...muh mein paani to aa hi gaya ...
deepika
To ho jaae ek plate tikki ;-)
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