अभी कुछ दिन हुए, हम कुछ मित्र चर्चा कर रहे थे । विषय था - दुनिया के मशहूर संग्रहालयों में मौजूद कलाकृतियां । कलाकृतियां जो अन्य देशों से चुरा कर या छीन कर लाईं गईं थीं और जिन्हें यह देश वापस माँग रहे थे । विषय गंभीर भी है और राजनैतिक बहस का कारण भी ।
एक तरफ तराजू में यह विचार है कि यह कलाकृतियां इन संग्रहालयों में सुरक्षित हैं और इन्हें वापस माँगने वाले देश गरीब हैं और इनकी देखभाल नहीं कर सकते । तो दूसरे पलड़े पर यह सच कि चोरी-डकैती, घर पर हो या देश पर, गलत है । अगर कोई कलाकार गरीब है तो क्या उसकी गरीबी के कारण दूर किसी अन्य देश में बैठे अमीर को यह हक मिल जाता है कि वह उस गरीब कलाकार की मेहनत से बनाई कलाकृति छीन ले और अपने घर की शोभा बढ़ाए । ध्यान दें - मुद्दा चोरी, डकैती और छीना-झपटी का है न कि एक गरीब कलाकार के अपनी बनाई कलाकृति को स्वेच्छा से बेचने का...
इस बात पर बहस करने वाले एक और पक्ष सामने रखते हैं -
चूंकि यह कलाकृतियां इन विख्यात संग्रहालयों में रखीं गईं हैं इसलिए करोड़ों लोग इन्हें देख पाते हैं । अगर इन्हें वापस किया जाए तो यह सबकी नज़रों से दूर हो जाएंगी । ध्यान देने लायक बात यह है कि ऐसे अधिकतर संग्रहालय धनाढ्य देशों में हैं । अब मिस्त्र या यूनान के गरीब निवासी तो अपनी सांस्कृतिक धरोहर देखने वहाँ नहीं जा सकते । तो आखिर यह कलाकृतियां कौन देखता है? निस्संदेह इन्हीं या अन्य अमीर देशों के लोग । मगर अगर यह धरोहर लौटा दी जाए तो एक तरफ तो पर्यटक धनाढ्य देशों की ओर न जा इन गरीब देशों की ओर जाएंगे जिससे शायद धनाढ्य देशों की अर्थव्यवस्था चरमरा जाए और दूसरी ओर गरीब देशों के लोग अपना वैभवशाली अतीत देख पाएंगे और उनकी अर्थव्यवस्था में भी सुधार होने की काफी संभावना है ।
जहाँ तक ठीक से देखभाल न कर पाने की बात है, हो सकता है कि एक साधारण गरीब कलाकार खुद अपनी कलाकृति नष्ट कर दे मगर क्या यह कारण इस चोरी, डकैती और छीना-झपटी को सही साबित करने के लिए काफ़ी है?
Distinct Kashmiri Cremation
5 years ago
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