Tuesday, July 20, 2010

प्रेम-वसंत

पल-पल का छल कैसा यह छलिया
छन-छन1 छलके इन हाथों से,
छलनी-सा जीवन यह छलिया
कि छन जाएं सुख-दुख नैनन से ।

तेरे प्यार में राधा बन जाऊँ
और छले बंसी से तू छलिया,
धूप-छाँव का खेल यह जीवन
रस छलकाती तेरी बंसुरिया ।

घने-घनेरे इस वन में
मधु-भरे महकते जीवन में
पौन2 का झूला झूलें हम-तुम
रहे अनंत वसंत औ'3 मधुबन ।

1क्षण-क्षण
2पवन
3और

2 comments:

समर वीर सिंह said...

Excelleeeeeeennntt. Such a beautiful poetry....after so so long.

Keep going.

Ritu Bhanot said...

Thanks :-)