Friday, March 11, 2011

शहीदों की चिताओं पर...

एक बुलबुले-सा जीवन लिये वे आये और हज़ारों चिरागों से हमारे जीवन और देश को रौशन कर चुपचाप अनंत में लीन हो गये । उनमें से कुछ के नाम हम जानते हैं और बहुत-से नाम ऐसे भी हैं जो अतीत के अंधकार में खो गये । वे किसी धर्म के लिए नहीं लड़े थे । वे लड़े थे इस देश के लिए - एक अटूट, अखंड भारत के लिए । क्यों ? क्योंकि उन्हें देश से दीवानावार मुहब्बत थी । यह प्यार है ही ऐसा आप अपने प्रेमी या प्रेमिका को सर्वस्व समर्पित कर देते हैं पर फिर भी मन में एक हूक-सी उठती है कि नहीं अभी कुछ कमी है और आत्मा कह उठती है -

मन समर्पित, तन समर्पित
और यह जीवन समर्पित
पर चाहता हूँ देश की धरती
तुझे कुछ और भी दूँ ।
(समर्पण, कवि: राम अवतार त्यागी)

और वे इसी कुछ और भी देने की उम्मीद लिये हमसे दूर हो गये ।

हममें से कई कहेंगे कि क्या हुआ, उन्होंने बहुत कुछ पाया भी तो - हमारा आदर, सम्मान...

पहली बात, जो उन्होंने दिया उसके आगे यह कुछ भी नहीं... स्वतंत्रता का कोई मोल नहीं होता । यह वह दौलत है जो जान पर खेल कर अर्जित की जाती है और पल-पल प्राणों से इसकी रक्षा करनी होती है ।

दूसरी बात, कहाँ है वह आदर ? हममें से कितने लोग ऐसे हैं जिन्हें इन अमर शहीदों के नाम पता हैं या उनका जन्मदिन याद है ? हम महात्मा गांधी का जन्मदिवस तो धूमधाम से मनाते हैं पर बोस और भगत सिंह को भूल जाते हैं । भगतसिंह, राजगुरू, सुखदेव जिन्होंने प्रेमिका की तरह फाँसी के फंदे को चूम मौत को गले लगाया था और जिन्हें हमने वचन दिया था -

शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पे मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा ।

(शहीदों की चिताओं पर, कवि: जगदंबा प्रसाद मिश्र ‘हितैषी’)

क्या हमें पता भी है कि उन्हें कहाँ रात के अंधेरे में चुपके-से जलाया गया था ? क्या हमने उन्हें दिए वचनों का पालन किया ? शुरुआत की तो उनकी कुर्बानियों पर अपने स्वार्थ को अधिक महत्त्व दे कर - हमने देश को बाँटा, उस देश को जो उनकी प्रेमिका थी, माँ थी । माँ या प्रेमिका बांटी नहीं जाती । अगर प्यार हो तो प्रेमिका पर सब न्यौच्छावर कर दिया जाता है, उसका कत्ल नहीं किया जाता । पर अपने नीहित स्वार्थ में हम भूल गए कि कोई रामप्रसाद बिस्मिल हो गए थे और भगतसिंह की ही तरह राजगुरू और अश्फ़ाक भी थे । इन प्रेमियों ने कहाँ चाहा था कि उनकी प्रेमिका की यह दुर्दशा की जाए । मगर हम सब भूल गये । बस याद है तो यही - मैं, मेरा... पर मैं और मेरा से ममत्व तक का सफ़र कठिन है... ममत्व से ममता आती है और माँ कहाँ बच्चे पर आँच आने देती है ?

आयें आज उन शहीदों को याद करें और मन से उन्हें श्रद्धांजली अर्पित करें । उनके रक्त से सींचे गए स्थानों को नवयुग के तीर्थ बनायें जहाँ धर्म, जाति के भेदभाव के बिना बस अमरप्रेमी बन पहुँचें ।

2 comments:

anil verma said...

वाह, क्या बात कहीं आपने, जिस दिल में वतन के लिये मुहब्बत हो, वही ऐसे खयाल
बयान करेगा

Hari Vyad said...

सेल्यूट भाई ।