Saturday, December 11, 2010

सत्य

शब्द शाश्वत सत्य सही
निःशब्द अंतरात्मा
झिंझोड़ती
पुकारती
पर पृथक हर जन की व्यथा ।
द्विधा पृथक
कथा पृथक
पृथक परिभाषा सत्य की ॥

चले सत्य-पथ पथिक बन
तपते मरू की रेत पर
पर पृथक हर पग की जलन,
पृथक प्रश्न
मन में मनु-संतानों के ।
श्वेत-श्याम की मंझधार में
मत पूछ कितने रंग भरे ॥

हर रंग सत्य
हर प्रश्न सत्य
तो उत्तरों की भीड़ में
बता सत्य
कह सत्य उत्तर कौन-सा ?

अश्वत्थामा हतो हतः
कह सत्य क्या यह झूठ था ?
फिर धर्मपुत्र कह क्यों चले
उस जलती नरक की राह पर ?
है जो जल सत्य या थल सत्य
या फिर मंझधार है सत्य ॥

है सत्य निर्झर धार-सा
या कोमल कमल-सा है सत्य ?
पर पंकज का जन्म कह
फिर क्यों नकारा जाएगा ?

सत्य क्या
जो निर्णय करे
क्या मोहिनी वो सत्य है ?
दृष्टिभ्रम, मतिभ्रम से परे
कृष्ण कह कौन-सा है सत्य वह ?

No comments: