Tuesday, November 9, 2010

एक प्रेम ऐसा भी

वो
तेरा पहला
मख़मली स्पर्श
और मिलन
मेरे होंठों से
और मन को लुभाती ललचाती
वो मदमाती महक
तुझे खुद में समा लेने की ख़्वाहिश
और तू सकुचाई-सी
जो घुल-सी गई थी मुझमें ॥

शायद शुरूआत ही तो थी वो
इस अनंत साथ की
इस नैसर्गिक अहसास की
जो आज भी
हर पल
मजबूर-सा करता है मुझे ॥

हर बार,
तन्हाई में
या कभी महफिल में
फिर खो-सा जाता हूँ
तेरे अहसास के आगोश में
ओ नन्हीं-सी,
मस्ती भरी
यौवन का अहसास लिए
मेरी प्रिये ॥

पता है
एक मैं ही नहीं
तेरे प्यार का कायल,
खबर है
कि बस मैं ही नहीं
तेरी चाह में घायल ॥

दिलकश
हर रूप तेरा
और वह
गहरा कत्थई-सा रंग,
और टीस भरा
कुछ कड़ुवाहट
कुछ मधुर मिठास
का अहसास,
छुपे चाहे कितने भी परदों के पीछे तू प्रिये
ढूंढ ही लेंगे तुझे
वो
जो हुए हैं दीवाने तेरे लिये ॥

जलें वो
जलना है जिन्हें
पर ओ सितारों में लिपटी
तुझे चखने
पल-भर होंठों से लगाने का
मिल ही जाएगा
मौका मुझे,
फिर खोल सब लिहाफ
पा लूँ तुझे

आ मेरे पास
ओ मेरी प्यारी चॉकलेट ॥

1 comment:

Ritu Bhanot said...

Comment about the way Chocolate is seen all over the world. These are the type of thoughts that have inspired advertisers (at least in France) to create some really amazing chocolate advertisements.

This poem was inspired from one such ads.