Thursday, October 5, 2017

प्रेम और संबंधों की सच्चाई

तेरी राह देखते-देखते पथरा सी गयी हूँ मैं,
अपनी धरती से जुड़ आज उठ रही हूँ ऊपर ।
जड़ें बाहर जो दिखतीं हैं वे नहीं,
जड़ें वे हैं जो मेरे अंदर से निकलीं हैं ।

ब्रह्मा की तरह मेरे अंतर के कमल पे तुम
विष्णु बन खिल रहे हो;
महान हो भले तुम
मगर याद रखो
मेरे बिना अस्तित्व नहीं तुम्हारा ।

चलायमान तुम थक जाओगे,
सच खोजते-खोजते ।
मैं एक जगह खड़ी
अपने अंतर में ही सत्य पा जाऊँगी ।

ठहरी हूँ
पर पड़ाव है यह,
नदिया को कौन
रोक पाया है ?

स्त्री निष्क्रिय 
पुरुष सक्रिय
मगर खोज क्या रहे हो तुम ?

सत्य वह नहीं जो बाहर है,
सत्य तुम्हारे ही अंतर में है छुपा ।
क्षण भर रुको,
ठहरो
और पा जाओ जो है तुम्हरा ।

Wednesday, July 26, 2017

मेरा सपना – कथा मेरे कश्मीर की

मेरा घर मेरा सपना है,
वह घर जो मेरा अपना है ।
खंडहर कहते कथा हमारी,
है ओर उद्गम के लौटने की अब तैयारी ॥१॥

मोती मेरी आँखों के
हैं भूल गयी दुनिया सारी,
है सोना प्यारा इस जग को
मेरी लुटी नींद थी कम प्यारी ॥२॥

यह मेरी कथा कश्मीर की
काश मीर कोई समझे इसको ,
है लहू लाल इस जग में सबका
मेरी आँखों से बहता क्या दिखा किसी को ॥।३॥

सन्नाटा चहुँ ओर,
क्या दिखा कोई चोर ?
पकड़ा कब किसी ने
जब दिखा वह चोर ?

मेरा घर मेरा सपना है,
वह घर जो मेरा अपना है ।
खंडहर कहते कथा हमारी,
है ओर उद्गम के लौटने की अब तैयारी ॥१॥

Monday, July 17, 2017

छल कैसा यह छलिया ?

पल-पल का छल कैसा यह छलिया ?
छन-छन1 छलके इन हाथों से,
छलनी-सा जीवन यह छलिया
कि छन जाएं सुख-दुख नैनन से ।

तेरे प्यार में राधा बन जाऊँ
और छले बंसी से तू छलिया,
धूप-छाँव का खेल यह जीवन
रस छलकाती तेरी बंसुरिया ।

घने-घनेरे इस वन में
मधु-भरे महकते जीवन में
पौन2 का झूला झूलें हम-तुम
रहे अनंत वसंत औ'3 मधुबन ।




1क्षण-क्षण
2पवन
3और


Sunday, December 11, 2016

परिचय

ज़िंदगी बता
मेरा परिचय है क्या,
विज्ञान का है कहना
कि पशु हूँ सबसे ऊँचा,
ख़ाक कह्ती है मुझे
कि हूँ मैं उठता हुआ धुआं
ज़िंदगी बता मेरा परिचय है क्या ॥ १ ॥

फूल कहता है
ओस की बूंद है तू,
पवन का है कहना
तू है मेरी ख़ुशबू,
रात को जलती हुई
तिल−तिल कर मरती हुई,
कहती है शमां –
तू रोशनी है ।
ज़िंदगी बता मेरा परिचय है क्या ॥ २ ॥

मिट्टी बताती है,
बीज बोने पर
वर्षा और धूप से
निखरते हुए रूप में
उगती फ़सल है तू ।
संत कहते ये रहे –
अत्योत्तम कायायुक्त
ईश्वर की सर्वोत्तम कृति है तू,
ऐ ज़िंदगी बता मेरा परिचय है क्या ॥ ३ ॥

वृक्षों की छाया से
पल−पल सिक्त हो के
भीगती−बरसती−सी
घटा है तू ।
या पलक से गिरते हुए
फ़लक पे चमकते से
सितारों में
चुपचाप सहती हुई
कुछ न कहती हुई –
एक मजबूरी है तू ।
जो ले के कलम
हो जाए शुरू
तो
एक भंवर है तू ।
सृष्टि को करने को
पल में तू ख़ाक कर दे,
डालों के इस पलने को
जला के राख कर दे,
हाँ, वही प्रलय है तू
ऐ ज़िंदगी बता मेरा परिचय है क्या ॥ ४ ॥



Wednesday, August 17, 2016

भनोत्

जो चिता पर हाथ जोड़े खड़ीं हैं वे माँ हैं मेरी ।

मैं ज़ोर-ज़ोर से रोते-रोते पुकार रहा हूँ – माँ, मत जाओ ।  माँ, रुक जाओ ।  पर माँ, मेरी माँ, जाने क्यों चली जा रहीं हैं ?

माँ जली जा रहीं हैं ।

मैं रो रहा हूँ ।

माँ जा रहीं हैं ।

माँ...

माँ...

माँ...


सन्नाटा ।

सब चुप ।

मैं रो रहा हूँ ।

तभी कोई आया ।  कौन ?  कौन हो तुम ?

श....

गोद को पालना बना झुला रहे हैं मुझे ।

मैं रो रहा हूँ ।

मैं रो रहा हूँ ।

माँ ।

मेरी माँ ।

कहाँ गयीं माँ ?

मैं तो अभी आया हूँ ?

क्या किया मैंने ?  माँ, क्यों क्रोधित हो रूठ गईं ?

माँ...

माँ...

माँ...


बाहों के झूले में झुलाया गया मुझे ।

क्यों आते ही रुलाया गया मुझे ?

क्या किया था मैंने मेरी माँ चलीं गयीं ?

मेरी माँ क्यों चलीं गयीं ?

भनोत् – भानु से उत्पन्न

माँ – भानु, जो जलतीं हैं ।

भानु तो नित जलता है ।

तू भनोत् ।

चल राजगुरू के पुत्र को अब राजा जी खुद ही पालेंगे ।

राजा...

राजा ?

यह क्या है ?

राजा...

रा∫∫∫ जा∫∫∫

हाँ, पिताश्री ने राजा जी को दे दिया मुझे ।  क्यों दे दिया मुझे ?

क्यों दे दिया मुझे ?

क्यों ?

माँ...

माँ...

माँ...

वर्ष बीते, और बीते ।  धीरे-धीरे समझाते हैं ।

“पुत्र, तुम प्रमाण हो ।”

“प्र मा ण... प्र मा ण ?”

“हाँ, प्रमाण ।”

“तुम प्रमाण हो... हमारे शरणागत् की रक्षा करने के प्रयास का प्रमाण ।”

“प्र मा ण...”

“हाँ भनोत्, प्रमाण ।”

मैं टकटकी लगाए देख रहा था – भनोत्, प्र मा ण ।

फिर देर हुई । समय बीता । प्रश्न मन में उमड़ते रहे ।  मन उत्तर को तरसता रहा ।

प्रमाण... शरणागत्... प्रण... भनोत् ।

“हाँ पुत्र, एक स्त्री आयी थी हमारे राज्य में... शरणागत् बन, शरण माँगती ।”

“मैं राजा हूँ, पुत्र, और तुम्हारे पिता राजगुरु ।  शरणागत् की रक्षा करना धर्म है हमारा ।  और स्त्री तो स्वयं शक्ति है ।”

मैं मुस्काया... स्त्री, शक्ति ।  माँ, मेरी शक्ति ।  माँ शक्ति ।

फिर अश्रुपूरित हो गए नयन ।

माँ चली जा रहीं हैं ।

माँ जली जा रहीं हैं ।

माँ शक्ति चली गईं ।

मेरी माँ चली गईं ।

मेरे आँसू देखे न गए उनसे पिताश्री भी रो पड़े ।

रा   जा    जी भी रो पड़े ।

समय बीता पर आँसू बहते रहे ।  बहते आँसू सबसे कहते रहे – 

माँ, मेरी माँ ।

माँ चली जा रहीं हैं ।

माँ जली जा रहीं हैं ।

किसी ने रोका भी नहीं था उन्हें ।  क्यों नहीं रोका था उन्हें ?

माँ मेरी चलतीं रहीं ।

माँ मेरी जलती रहीं ।

वर्ष ।

और वर्ष ।

कुछ और वर्ष ।

हृदय मे अब भी समृतियां थीं ।

आँखों में अश्रु भी थे ।

कहते हैं आज मुझे ले जा रहे हैं ।  पिता जी और रा  जा  जी मुझे ले जा रहे हैं ।

मंदिर ।

मंदिर ।

“पुत्र, तेरी माँ का है ।  यह मंदिर तेरी माँ का है ।”

मैं खुश हूँ ।

माँ, माँ, माँ   ...

यह गोद है, गोद है यह मेरी माँ की ।  माँ की गोद मिल गई मुझे ।  मैं प्रसन्न हो खेलने लगा ।  माँ की गोद में खेलने लगा ।

माँ...

माँ...

माँ...

मेरी माँ ।

लौट आयीं मेरी माँ ।  हम खेल रहे हैं ।

पिता श्री मुस्कुरा रहे हैं ।


रा   जा   जी भी मुस्कुरा रहे हैं ।