प्रेरणा, प्रेयसी
नारी नारायणी
है सार संसार का ।
कभी खिलती हुई-सी कली ।
प्रलय की ज्वाल अंतर लिये
दुष्टों के लिये काल-कालिका है यह,
है यही राधिका कृष्ण की ।
है सार संसार का ।
नारी नारायणी
है सार संसार का ।
है माता कभी
कभी अर्धांगिनी,कभी खिलती हुई-सी कली ।
हृदय परिपूर्ण
प्रेम, ममत्व सदा,प्रलय की ज्वाल अंतर लिये
दुष्टों के लिये काल-कालिका है यह,
है यही राधिका कृष्ण की ।
प्रेरणा, प्रेयसी
नारी नारायणीहै सार संसार का ।
2 comments:
थोड़े में बहुत कह जाना और ख़त को तार बना देना यही है एक रचनाकार की सफलता का पैमाना । ये मैं ही नहीं कहता आंग्ल भाषा के सुप्रसिद्ध निबंधकार मरहूम फ़ाँसिस बेकन कह गए हैं ऋतु जी। इस नाते आपकी रचना निःसंदेह न केवल सफल है बल्कि हृदयस्पर्शी भी लेकिन मैं मानता हूँ कि नारी की पूर्णता पुरुष के सानिध्य में ही संभव है और ऐसे धर्मों और समाजों का तिरस्कार ज़रूरी है जो नारी को पुरुष के बराबर बैठाने के विरुद्ध हैं ।
मुनीश जी धन्यवाद । यह जान कर प्रसन्नता हुई कि आपको यह प्रयास पसंद आया । सही कहा आपने, स्त्री और पुरुष की इसी अपूर्णता को भगवान शिव ने स्वीकारा और अर्धनारीश्वर कहलाये, जब कृष्ण ने स्वीकारा तो राधा-कृष्ण का युगल स्वरूप प्राप्त किया, भगवान राम को भी अश्वमेध यज्ञ करने के लिए सीता जी की स्वर्ण प्रतिमा बनवानी पड़ी, जिन्हें हम पूजते हैं उन्होंने इस अधूरेपन को जाना, समझा और अपनाया तो क्या उनके भक्तों को उनका अनुसरण नहीं करना चाहिए ?
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