Friday, October 14, 2011

जन-महाभारत

जब जन-जन के मन में हो पाँडव
शहर का चप्पा-चप्पा खाँडव,
अंतर में आक्रोश का तांडव;
हो जाए सत्ता दुर्योधन
और नेत्रहीन धृतराष्ट्र;
होंठ भीष्म के चुप्प साध लें,
अंबा शस्त्र धारण कर युद्ध में
आ जाए शिखंडी रूप धर;
गुरू चाणक्य को बनना होगा
परशुराम को एक बार फिर फरसा धारण करना होगा ॥

कृष्ण तटस्थ न रह पाओगे
जन-कल्याण के निमित्त एक बार फिर
तुम्हें चक्र-सुदर्शन लेना होगा ॥

छल-कपट का शासन हो जब
हर तरफ दुःशासन हो जब
करे देश द्रौपदी बन त्राहिमाम्
द्रोण से तब चले क्या काम
इतिहास के पन्नों को फिर
एक श्वास में आगे बढ़ना होगा
काल-चक्र को पलक-झपकते
द्वापर से फिर कलियुग में आना होगा ॥


(यह कविता जारी है जीवन की तरह ।  विश्व और देश के हाल के घटनाक्रम से इसे लिखने की प्रेरणा मिली ।)

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