Monday, January 2, 2012

अजनबी अतिथि


फिर मेरे द्वार आ खड़ा हुआ है यह अजनबी-सा नया साल । कुछ जाना-पहचाना-सा लगता है पर है फिर भी अजनबी । अपने झोले में न जाने कौन-सी सौगात ले कर आया है ।

पर हमें तो यूँ भी अजनबियों को अतिथि बना अपना कर घर में बसा लेने की आदत है, सो इसे भी अपना लिया है हमने । क्यों, कब, कैसे, कहाँ से आ इसने द्वार पर दस्तक दी और घर में घुस आया कुछ पता नहीं । पता नहीं कि यह मित्र है या शत्रु । भले ही इसके मुँह पर राम-राम है पर डर-सा लगता है कि कहीं बगल में छुरी छुपाये न हो । पर आज जिस मोड़ पर खड़े हैं वहाँ इसे अपनाने के अलावा कोई चारा भी तो नहीं है हमारे पास ।

चलो नव-वर्ष आ जाओ जीवन में और धकेल दो कुछ और बुढ़ापे की ओर । पर चिंता न करो बहुत दम है अभी हम में और कर सकते हैं सामना तुम्हारा । इन आँखों की चमक चुनौती दे रही है - आओ कर लें आज दो-दो हाथ । यह तो समय ही बतायेगा कि कौन विजयी होगा इस प्रतिस्पर्धा या युद्ध में । पर हारना हमारी फ़ितरत नहीं और अतिथि को द्वार से लौटाने की प्रथा नहीं है हमारे यहाँ तो आओ अजनबी अतिथि, आओ और कुछ समय हमारे साथ भी बिता जाओ ।

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