क्यों मेरी ख़ामोशी को तुम एक नाम देते हो?
यह अन्जान आवाज़ है,
एक बच्चे-सी
जो अभी सीख रहा है बोलना
इसलिये चुप है
मेरी ख़ामोशी अभी एक सूरज है
जो रात के दामन में छुपा
इंतज़ार कर रहा है वक्त का
वक्त - जिसके आने पर
उजाले का रूप ले
यह निकलेगा पूरब से
यही ख़ामोशी मेरी ज़ुबान है
मैं
मैं कौन?
जान लेंगे एक दिन
अभी बस ख़ामोशी...
copyright June 2008, (blog: sahitya-goshthi)
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5 years ago
1 comment:
allllllllll line are touch in heart.... khamoshi khabi nai jathi ......
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