सदियों तक रगों में बहते-बहते
दर्द लावा-सा बन जाता है ।
धीरे-धीरे साँझ ढलते-ढलते
आँखों से लहू बन बह जाता है ।
हर लम्हा एक पल ज़िंदगी है,
सूरज भी तो पल भर में ढल जाता है ।
आँसुओं की उम्र लंबी होती है
हर आँसू एक ज़ख्म बन जाता है ।
समय कोई ज़ख्म नहीं भरता
हर बीतता लम्हा इसे नासूर कर जाता है ।
Not Yet
5 years ago
2 comments:
समय कोई ज़ख्म नहीं भरता
हर बीतता लम्हा इसे नासूर कर जाता है ।
this is the biggest truth...
nice...
रितुजी बहुत दर्द है इस कविता में जो पढ़ने से ही महसूस होने लगता है.
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