Sunday, December 11, 2016

परिचय

ज़िंदगी बता
मेरा परिचय है क्या,
विज्ञान का है कहना
कि पशु हूँ सबसे ऊँचा,
ख़ाक कह्ती है मुझे
कि हूँ मैं उठता हुआ धुआं
ज़िंदगी बता मेरा परिचय है क्या ॥ १ ॥

फूल कहता है
ओस की बूंद है तू,
पवन का है कहना
तू है मेरी ख़ुशबू,
रात को जलती हुई
तिल−तिल कर मरती हुई,
कहती है शमां –
तू रोशनी है ।
ज़िंदगी बता मेरा परिचय है क्या ॥ २ ॥

मिट्टी बताती है,
बीज बोने पर
वर्षा और धूप से
निखरते हुए रूप में
उगती फ़सल है तू ।
संत कहते ये रहे –
अत्योत्तम कायायुक्त
ईश्वर की सर्वोत्तम कृति है तू,
ऐ ज़िंदगी बता मेरा परिचय है क्या ॥ ३ ॥

वृक्षों की छाया से
पल−पल सिक्त हो के
भीगती−बरसती−सी
घटा है तू ।
या पलक से गिरते हुए
फ़लक पे चमकते से
सितारों में
चुपचाप सहती हुई
कुछ न कहती हुई –
एक मजबूरी है तू ।
जो ले के कलम
हो जाए शुरू
तो
एक भंवर है तू ।
सृष्टि को करने को
पल में तू ख़ाक कर दे,
डालों के इस पलने को
जला के राख कर दे,
हाँ, वही प्रलय है तू
ऐ ज़िंदगी बता मेरा परिचय है क्या ॥ ४ ॥



1 comment:

vyathit said...

A life entangled in webs of multiple identities does not carry us very far. Inquisitiveness bordering on confusion is a block in the path of the stream. While we question who we are, let us keep reminding ourselves that we owe it to ourselves to keep moving. I am searching for the guiding light in this otherwise scintillating piece of soul search.